Friendship Day story Hindi me 2020 । आप पुराणों में सबसे श्रेष्ठ मित्र के बारे में जानते हो ?

Friendship Day story : पुराणों में सबसे श्रेष्ठ मित्र को जानते है आप नहीं जानते हो तो जरूर पढ़िए ।

दोस्ती की कोई परिभाषा नहीं, कोई सीमा नहीं है ऒर कोई सरहद बी नहीं । दोस्ती केवल  सिर्फ एक मापन छड़ी है, यानी दिमाग को समझना । अगर मन को मिलाया जाए, तो उम्र, जाती, प्रजाति ऒर धर्म या स्थिति कुछ बी उस दोस्ती के लिए बाधा नहीं बन सकती है । इसीलिए तो भगवान रामचंद्र ने सुग्रीव से मित्रता की और उनके सुतपुत्र कर्ण राजा दुर्योधन के एक अच्छे मित्र बन पाए थे । श्री कृष्ण के अच्छे दोस्त सुदामा ओर द्रौपदी बन पाए थे।
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दोस्ती के इस अटूट बंधन को अमर करने के लिए आज विश्व मैत्री दिवस या मित्रता दिवस के जश्न मनाया जाता हैं।

 फ्रेंडशिप डे क्यों मनाया जाता हैं । Why is Friendship Day celebrated ?


 वह आदमी जो हर दिन, हर पल आपका साथ देने वाला तुम्हारा मित्र  है। तो उसके लिए एक विशेष दिन होने की क्या बात है !
ऐसे सवाल स्वाभाविक हैं।  तो यह मित्र दिबस उस पुराने दिन को याद करने और एक पल के लिए उस पल में लौटने का मौका देता है इस फ़्रेंडशिप डे ।  इसीलिए हर साल अगस्त में पहला रविवार को फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है।


 1958 में, 1 अगस्त में पहला रविवार को पैराग्वे में अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस के रूप में मनाया गया था । यह मित्र दिबस धीरे-धीरे कर के अभी पूरी दुनिया भर में मनाया जा रहा है । अब यह एक प्रवृत्ति में नतीजतन गया है। आज का इस दुनिया में सोशल मीडिया अब फ्रेंडशिप डे मनाने का एक तरीका बन गया है।


इस साल की फ्रेंडशिप डे किलिए, ऐसी ही कुछ यादों को ताजा करने किलिए ----पुराणों के पन्नों से कुछ।



 भगवान श्री कृष्ण और सुदामा: यदि भारतीय पौराणिक कथाओं में मित्रता का उल्लेख किया जाए तो, सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का उल्लेख बारे में किया जाता है।  इसीलिए उसकी मित्रता की उल्लेख किया जाता हे कि, उनकी दोस्ती पर जाती, धर्म या सामाजिक स्थापना पर आधारित नहीं थी । सुदामा भगवान श्री कृष्ण के बचपन के दोस्त नहीं थे, वह उसके बहुत करीब थे । भगवान श्री कृष्ण राजा थेले ऒर सुदामा जाति में ब्राह्मण और गरीब थे। फिर भी उनकी प्रतिष्ठा में सामाजिक प्रतिष्ठा कोई दीवार नहीं थी । पौराणिक में ये बात है कि श्रीकृष्ण ने राजा बनने के बाद भी, उन्होंने सुदामा से ख़ुदभाज को छीन के खाया करते थे ।


 भगवान श्री राम और सुग्रीव: रामायण में, अयोध्या के राजा राम और सुग्रीव के बीच का संबंध मित्रता का अचूक संकेत है।  सुग्रीव ने उनकी मदद की जब राम को उनकी प्यारी पत्नी सीता की तलाश थी। सुग्रीव ने भगवान राम की पत्नी माता सीता को खोजने में मदद कीया था ।  इसी तरह, भगवान राम ने भी सुग्रीव के छोटे भाई बाली से किष्किंधा सिंहासन वापस पाने में मदद किया था ।



 कर्ण और दुर्योधन: कर्ण-दुर्योधन बिना शर्त दोस्ती का एक  जलन्त उदाहरण है । कुंती के गर्भ में जन्म होने के बाद भी कर्ण सूत के परिवार में बड़े हुए थे । हालाँकि, उसका मन ओर शरीर राजतंत्र जेसा नहीं खोया था । यद्यपि कर्ण के पास बुद्धि, ज्ञान और मानवीय गुणों से समृद्ध था, पर वह आपने परिचय किलिए अक्सर हीन भावना से ग्रस्त होने पड़ रहा था ऒर दुर्योधन ने उसे अपना मित्र स्वीकार कर लिया था । जिस समय हस्तिनापुर में जाति और भेदभाव प्रथा मान रहे थे, तो दुर्योधन ने उन्हें अनदेखा कर दिया और कर्ण को अंग राज्य का राजा बना दिया । और कर्ण ने अंत तक दुर्योधन का हाथ नहीं छोड़ा।
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श्री कृष्ण ऒर अर्जुन की फ़ोटो


भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन: अगर किसी को भी पूछा जाए कि पुराणों में सबसे करीबी दोस्त कौन है, तो पहला उदाहरण होगा भगवान कृष्ण और अर्जुन का । दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध महाभारत के युद्धक्षेत्रों में देखा गया था । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के क्षेत्र में यह समझाया था कि जीवन और मृत्यु जैसी हर चीज पूर्व से निर्धारित होते है । श्रीमद भागवत गीता में  सुंदर वर्णन किया गया है । उनकी दोस्ती से यह भी सिखने को मिलती है कि एक अच्छा दोस्त एक अच्छा मार्गदर्शक हो सकता है ।


 भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी: कुछ लोग सोचते हैं कि रक्षा बंधन की परंपरा भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी के बीच रहे सखा-सखी घनिष्ठ संबंध से जुड़ी है।  ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने सिसुपाल को सुदर्शन चक्र छोड़ा था, तब भगवान कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी । भगवान श्रीकृष्ण की उंगली से खून निकलता हुए देख कर, द्रौपदी ने संगसंग ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली में लपेट दिया था । द्रौपदी का ऐसा प्रेम भगवान श्री कृष्ण के दिल को स्पोर्स किया था । भगवान श्री कृष्ण ने भी हर समय द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया था । यह उसि समय जब भगवान श्री कृष्ण ने अपना वादा पूरा किया, जब द्रौपदी को राज दरबार में बस्त्रो हरण किया गया और उन्हें बहुत अपमानित किया गया।

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