भगवान श्री कृष्ण ने दानबीर कर्ण का अंतिम संस्कार क्यों किया?

द्वा पर युग मे कौरव और पाँच पांडव के बीच महाभारत युद्ध छिड़ गया था । यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच था । कहा जाता है कि महाभारत युद्ध धर्म की पुनः स्थापना के लिए लड़ी गई थी । इस युद्ध में कई बड़ा बड़ा महारथी लड़ाई में शामिल हुए थे । इस महान महारथी में से एक हे जिसके नाम दानबीर कर्ण थे । आज हम सब इसके बारे में जानेंगे । 

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  • दानबीर कर्ण की ओन्तिम संस्कार भगवान श्रीकृष्ण कियुकिया । कर्ण तो ओधर्म के पक्ष में रेहेकर युद्ध किया था । आगे जानते हैं इसकी पूरी जानकारी ।


दानबीर कर्ण ने मोहाभारत युद्ध मे अपने जीवन के अंत में भी दान करने में संकोच नहीं करते थे । इसीलिए पूरी दुनिया में दानबीर कर्ण के रूप में जानती है । लेकिन महाभारत युद्ध में, कर्ण ने अधर्म के पक्ष में लड़े क्योंकि वह दुर्योधन को बच्चन दिए थे । लेकिन अपनी दानशीलता के लिए कर्ण ने हमेशा एक दानबीर के रूप में लोगों के दिमाग में छाप छोड़ गई ।



भगवान श्री कृष्ण ने खुद भी कर्ण को सबसे बड़ा दानबीर कहा था । अर्जुन ने मोहाभारत युद्ध में आपने धनुष से बार करने पर दानबीर कर्ण ने घायल हो गया और उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्ण को हमेशा एक वीरता और उदारता के रूप में याद किया जाएगा । यह सुनकर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि कर्ण सबसे महान दानबीर कैसे बना?
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  •  आगे जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को दानबीर कियु कहा ।


 भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बात साबित करने किलिए अर्जुन को कहा । भगवान श्रीकृष्ण की वजह से ही कर्ण ने अपनी कबच कुंडल भगवान इंद्रदेव को दान दिया था ।  स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी रणनीति के अनुसार इंद्र से कहा कि वह ब्राह्मण के रूप धारण करके जाएं और कर्ण से उसके कबच और कुंडल को मांग लीजिए । अगर युद्ध के अंत तक कर्ण की कबच और कुंडल उसके साथ रहे तो उसे युद्ध में हराना असंभव है । भगवान श्रीकृष्ण के सलाह ओंस अनुसार, इंद्र देब ने ब्राह्मण के रूप में गए और कर्ण से उसकी कबच और कुंडल मांगी । कर्ण भी जानता था कि जब तक उसके पास कबच और कुंडल होगी, तब तक उसे कोई नहीं हरा सकता । फिर भी उन्होंने इंद्र को अपना कवच और कुंडल दान दे दिया ।


 ऐसा कहा जाता है कि जब दानबीर कर्ण ने अपने अंतिम सांस लेने वाले थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने फिर से कर्ण की परीक्षा लीया था । वह दानबीर कर्ण के पास गया और कहा की, "आप एक दानबीर हो क्या आप मुझे एक दान देंगे?" उसी समय में दानबीर कर्ण के पास देने किलिए कुछ भी नहीं बचा था बह सब कुछ दे दिये थे । फिर उसे अचानक से याद आया कि उसके पास सुनहरे दांत हैं । फिर वह तुरंत एक पत्थर ले आया जो पास में गिरा था, उसमें अपने दाँत को तोड़ दिए और उसे भगवान श्रीकृष्ण को दान कर
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दानबीर कर्ण की इस भावना को देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत खुश हुए और उनसे कोई भी 3 वर मांगने किलिए कहा और   उन्होंने आपने पहेला वर माँगा कि वह शूद्र जाती लोगों का बचाव तब करेंगे जब वह फिर से इस धरती पर पैदा होंगे । उसके दूसरा वर था, भगवान श्री कृष्ण ने अगले जन्म को उस स्थान पर ले जहां कर्ण ने पैदा हुआ है । तीसरे वर में, भगवान श्री कृष्ण से कर्ण ने माँगा कि, उसका अंतिम संस्कार स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने करें और उस स्थान पर करें जहाँ कोई अधर्म नहीं है । दानबीर कर्ण की मृत्यु के बाद,भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं उनका अंतिम संस्कार अपनी हात से किया था ।

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