yashasvi jaiswal biography।यशास्व्वी जैस्वाल की जीवनी:
आल राउंडर गेंदबाजी के साथ बलेबाजी,पानी पूरी बेचने,अंडर-19 वर्ल्डकप तक दहरा शतक,कोच ज्वाला सिंग, बर्थ ओर फैमली
Yashaswvi jaiswal photo |
आज हम एक ऐसी सॉक्स के बारे में जानेंगे । जो 19 साल की उम्र में 2020 में भारतीय अंडर-19 क्रिकेट टीम का नेतृत्व या कप्तान रहने वाला एक गरीब घर का लड़का का जीवनी बारे में जानेंगे । इंडियन क्रिकेट टीम के इस राइजिंग स्टार की बैक स्टोरी के बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे हर कोई इंसान के पीछे कोई ना कोई स्ट्रगल स्टोरी जरूर होती है। पर एक ऐसे खिलाड़ी हैं । जिनका संघर्ष छोटी से उम्र में शुरू हुआ इस उम्र में शायद ही किसी बच्चे को पता नहीं होगा कि लाइफ का स्ट्रगल असल में होता क्या है ? आइए जानते हैं एक पानी पूरी बेचने वाले से लेकर अंडर-19 वर्ल्ड कप इंडियन टीम में अपनी जगह बनाने वाले ओर सफर के बारे में एक तरफ से जुड़ी कुछ बातें हमें हैरान कर देती है । वहीं दूसरी तरफ हमारे लिए इनके जीवन जीने का जज्बा किसी इंस्पिरेशन से कम नहीं है इसलिए आप इस आर्टीकल को पूरी पढिये । उस छटे लड़के के एक ऐसा भी समय था जीस समय वह क्रिकेट खेल को आपने दिल से चाहने लागे थे पर आने के लिए उसके परिवार के पास ना पैसा था । ना रहने के लिए अच्छा घर था । ना क्रिकेट खेल का ट्रेनिंग लेने के लिए अच्छा कोच था फिर बी अपना सपना का पूरा करने के लिए जी जान लगा दी और सपना पूरा करने के मेहनत करते रहे ओर कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा एबं अपना कर्तव्य ओर मेहनत दम पर आज उसी क्रिकेटर ने भारतीय अंडर-19 क्रिकेट टीम को 2020 में अपना कप्तानी से फाइनल तक पहुंचने का रास्ता दिखाया था जिसका नाम है yashaswvi jaiswal आज हम सब इस भारतीय क्रिकेटर आपने बचपन से लेकर अभी तक की संघर्ष कहानी बारे में जानेंगे ।
- यशस्वी जैस्वाल famliy ऒर birth place के बारे में
इस छोटा सा लड़का यशास्व्वी जैस्वाल का जन्म 28 दिसंबर 2001 को उत्तर प्रदेश जिला में और भदोही वहां के एक छोटे से गांव में यशस्वी का जन्म हुआ था । उनके पिताजी का नाम है भूपेंद्र जैसेवाल । उनके पिताजी की गांव में एक छोटी सी दुकान है । जिस दुकान से वह अपने परिवार को चला रहा था और उनकी मां की नाम कंचन जैस्वाल है जो घर का काम देखभाल करते है । यशस्वी जयसवाल के परिवार में मम्मी पापा के साथ और 5 भाई ओर बेहेन भी है जिसको कुल मिलाकर परिवार में 8 सदस्यों है इस तरीके का एक बड़ा परिवार को चलाने के लिए उसका पिताजी के पास इतना आर्थिक समृद्धि नहीं था । एक ऐसी स्थिति में यशस्वी जयसवाल ने सपना देख लिया के क्रिकेटर बनने का । हम सब लोगों जानते हे की क्रिकेट में या स्पोर्ट में जाने के लिए बहुत ज्यादा पैसा चाहिए ओर एक अच्छी स्पोर्ट कोच चाहिए । इस समय में भारत का क्रिकेट टीम में खेलने के लिए गांव गांव में अच्छा अच्छा टैलेंटेड लड़का हर गांव में है और बहुत अच्छी खेलते बी लेकिन पैसा के ओभाब के कारण अपने सपनों का अधूरी में छोड़ देते हैं । यशस्वी जैस्वाल के पास पैसा तो नहीं था लेकिन फिर भी उन्हेंने सोच लिया था कि क्रिकेटर बनने का यशस्वी जयसवाल ने सचिन तेंदुलकर का जैसे महान खिलाड़ी को अपनी अनु प्रेरित मानते थे और सचिन तेंदुलकर जब भी टीवी पर बैटिंग करते थे उस समय उसे देखकर यशस्वी जैस्वाल ने सोचता था कि मैं भी मुंबई जाऊंगा ओर बड़े शहर में रेहेकर क्रिकेट खेलूंगा । लेकिन मुंबई जैसे बड़े शहर का खर्चा उठा पाना उनके पिता की बस की बात बिल्कुल भी नहीं थी । मुंबई में यशस्वी जैस्वाल का पिता की भाई रहते थे इसीलिए उसके गांव को आना जाना उसी सदस्यों का लगा रहता था ।
यशस्वी जैस्वाल ने 2011 में 10 साल की उम्र में एक दिन उसी के अंकल के घर पिताजी के साथ मुम्बई घूम ने किलिए चला गया । वहां मुंबई पहुंचकर भूपेंद्र को यह पता चला कि उनके भाई भी जैसे तैसे अपना गुजारा कर रहे हैं और उनके पास रहने के लिए इतनी भी जगह नहीं थी किसी को अपने साथ रख सके का । उन्हीं पर यशस्वी ने आजाद मैदान को देखा वहां पर लोग क्रिकेट खेल रहे थे वह अपने पिताजी को जिद किया की मैं गांव वापस नहीं जाऊंगा ओर मे उन्हीं रेहेकर क्रिकेट खेलूंगा उसके पिताजी ने उसका क्रिकेट खेल का जिद और पागलपन कर देख कर उसके पिताजी ने क्रिकेट खेलने के लिए राजी हो गया ।
राजी तो हो गया पर रहेगा कहाँ पर किया खाएगा लेकिन इनकी भाई ने उनके पिताजी के पास आकर बोला कि में कुछ दुकान दार बाले को जानते हु अगर यशस्वी को ठीक लगे तो बह डेरी के दुकान पर काम करने के साथ-साथ उन्हीं में रेहे भी सकता है । यशस्वी जयसवाल ने डेरी में काम करना शुरू किया ओर साथ ही साथ क्रिकेट खेलते रहे । यशस्वी ने गाँव से हीं बहुत अच्छी क्रिकेट खेलते थे । जब बह गाँव में क्रिकेट खेलते थे दूर दूर से लोग देखने किलिए आते थे उत्तरप्रदेश के भदोही मैं । इनके पास क्रिकेट के सपना अलावा और कुछ भी नहीं था और बिना सोचे समझे यशस्वी ने डेरी पर रहने के लिए हां बोल दिया और रोज सुबह जल्दी उठकर क्रिकेट का ट्रेनिंग के लिए आजाद मैदान जाया करते थे और खाली समय में डेरी पर काम किया करते थे। जैसे साफ-सफाई से लेकर चाय बनाना पानी गर्म करना और लगभग हर छोटा-मोटा काम डेरी पर किया करते और रात हो जाने पर दुकान पे हीं सो जाया करते थे ।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस समय में बह इतना सब काम कर रहे थे तब उनकी उम्र लगभग 10 से 11 साल के बीच थी । बस इस तरह कुछ दिनों तक चलता रहा फिर एक समय ऐसा आया जब बह अपना पूरा ध्यान सिर्फ क्रिकेट में देने लगे ओर जिसके कारण यशस्वी दुकान पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे । ऐसे में एक दिन देरी के मालिक ने उनका सामान उठाया और उन्हें वहां से जाने के लिए साफ़ साफ़ बोल दिया कुछ समय के लिए यशस्वी को समझ ही नहीं आया कि वह अब क्या करें हैरानी की बात है । यशस्वी ने इतनी बड़ी बात को अपने घर वालों को भी नहीं बताई और ना ही मुंबई में रहने बाले अपने चाचा को । उन्होंने अपना सामान उठाया और सीधे आजाद मैदान की ऒर चले गए ओर उस समय तक यशस्वी जैसवाल ने थोड़ा बहुत क्रिकेट खेल लिया था इसी वजह से थोड़ी बहुत जान पहचान हो गया था इसी वजह से वह अपने कोच को फोन किया और जशास्वी ने अपने परेशानी के बारे में बताया उसी कोच ने बोला कि मेरे घर आ जाओ मेरे पास रुकलो । लेकिन उसका घर भी उतनी बड़ी नहीं था एक ही कमरे था इसीलिए उनको बी बहुत ज्यादा मुश्किल हो रही थी ।
उनके कोच पपु सर् के साथ आजाद मैदान जाकर क्लब के फाउंडर को उन्होंने मदद मांगा ओर इमरान ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वह इस मैच में अच्छा परफॉर्म करेंगे तो इमरान उन्हें ग्राउंड पर ही एक टेंट में रहने की परमिशन दे देंगे इस बात को सुनकर यशस्वी ने बहुत खुश हुआ और सोचा कि फाइनली अब उन्हें एक टेंट में रहने का मौका मिल गया इतना ही नहीं इस बात से भी खुश थे कि ग्राउंड पर रहने के कारण अब वह सुबह उठते ही सबसे पहले अपने क्रिकेट की ट्रेनिंग शुरू कर सकते हैं । कई बिस्वास कोर नेई पाएगा कि ये 10 या 11 साल के बच्चे ने टेंट में रहने की इतनी खुशी हो सकती है । ज्यादातर लोग ऐसे वक्त में अपने उम्मीद खो बैठते हैं । करीबन 3 साल यशस्वी ने टेंट में रहकर अपनी क्रिकेट का सपना पूरा करने किलिए लोगे रोहे । हम आपको बताना चाहते हैं कि टेंट में ना ही कोई बिजली थी ना ही कोई टॉयलेट लगभग आधा किलोमीटर दूर में एक सौचालय था जो देर रात हो जाने से बंद हो जाया करता था । यशस्वी का कहना हे की सबसे ज्यादा तकलीफ बारिश के दिनों में होती थी । क्योंकि मैदान में पानी भर जाने के कारण उन्हें बार-बार टेंट की जगह बदलनी पड़ती थी ओर यशस्वी की जिंदगी में एक ऐसा भी समय आया जब यह सोचा करते थे की इसके बाद में खाना क्या खाएंगे ?
इसीलिए पैसों की कमी की वजह से वह सुबह कहां पर भी मैच खेलते रही और रोज रात को एक दुकान में पानीपुरी बेचा करते थे उस समय असुविधा ये होते थे कि सुबह में सेंचुरी मार कर के आए ओर हर शाम को पानीपुरी का ठेला में काम करते थे उसीबक्त उसके कोई दोस्त दुकान पर आ जाता तो बहुत दिक्कत में पड़ जाते थे और बह इधर-उधर छुप जाते थे जशास्वी की मन में यह सोच आ रहा था कि मैं सुबह इसके साथ खेल रहा हूं इसके काम बारे में दोस्तों को पता चल गया तो मैं गोलगप्पा बेच रहा हूं तो मेरा मजाक बहुत उड़ाया जाएगा वही सोच रहा था बाद में यशस्वी जसवाल ने एहसास क्या की कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता कोई दिक्कत नहीं मैं ये काम कर रहा तो । पानीपुरी बेचने के साथ-साथ वह क्रिकेट के ट्रेनिंग क्लास के बाद कभी भी इसमें कुछ कुछ मैच में स्कोरिंग गिनते तो कभी उम्पियरिंग करते और कभी कभी कुछ मैच में बाउंड्री से बोल ढूंढ कर लाया करते थे और इस तरह उन्हें कुछ पैसे मिल जाया करते थे ।
उन दिनों में यशस्वी जैस्वाल ने कोशिश करते थे कि वह ज्यादा से ज्यादा कॉर्पोरेट मैच खेले ओर उसके अच्छा परफॉर्म करने पर उन्हें उस दिन का खाना फ्री मिल जाता था और साथ ही कुछ पैसे भी मिल जाते थे । देखा जाए तो ऐसा करने के अलावा उनके पास और कुछ उपाय भी नहीं था। क्योंकि घर से भेजा गई पैसे मुंबई शहर में गुजारा करने के लिए काफी नहीं हुआ करते थे । पर इस बात की जशास्वी ने किसी से भी शिकायत नहीं की । उसके लिए क्रिकेट खेलने का सपना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था । हर रात को उन्होंने वानखेड़े स्टेडियम की लाइट दिखा करते थे और उसे देखकर यशस्वी जैसवाल आपने आपको बस यही कहते हैं कि एक दिन में परिस्थिति चाहे जैसी भी हो में अपनी दम पर खेलूंगी । यशस्वी ने अपना सपना कभी बी कमि होने नहीं दिया । आगे चलकर जिंदगी में ऐसे भी मड आए जब उन्हें किसी और के पास से रेहेकर खेलना पड़ा क्योंकि उस वक्त जितने भी पैसे उनके पास हुआ करते थे उससे उन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाए उतना ही काफी था मुंबई में उनको स्ट्रगल करने किलिए उतनी आर्थिक ही नहीं था ।
यह 3 साल उनके लिए इमोशनली काफी चुनौतीभरी थे । उन्हें टेंट में रहने की परमिशन तो मिल गई थी पर वह अकेले रहना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा यह भी खाना बनाने से लेकर कपड़े तक खुद धोया करते थे उन्हें बच्चा समझकर ग्राउंड का मालीक और बाकी स्टाफ बार-बार धमकियां किया करते थे। हर वक्त यशस्वी को धमकाया करते हैं और कई बार तो उस पर हाथ भी उठा दिया करते थे। इसी कारण यशस्वी को उन सभी के लिए भी खाना बनाना पड़ता क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करते तो उसे खाना खाने किलिए नहीं मिलता था । गर्मियों के दिनों में उन्हें ने टेंट के बाहर सोने पड़ता था और बाहर सोने की वजह से कई बार उन्हें एलर्जी भी हुई जिसके चलते उनके चेहरे और दूसरे बॉडी पार्ट First spelling हो जाए करते थे । एक 12 या 13 साल के बच्चे के लिए यह सब किसी डरावने सपने से कम नहीं हो सकता । आज भी जब यह दिन याद करते हैं तो बहुत भावुक हो जाते हैं । इतनी कम उम्र में 3 साल तक लगातार संघर्ष करते रहने की वजह से अब यशस्वी काफी हताश हो चुके थे जिसके कारण उनके पिता ने फैसला किया कि अब उन्हें मुंबई से वापस ले आएंगे । लेकिन इस चुनती पूर्ण समय मे क्रिकेट की प्रैक्टिस छोड़कर वापस नहीं जाना चाहते पर उनको यह भी नहीं पता था कि वह आगे आखिर क्या करें ।
- Yashasvi jaiswal Mumbai के संघर्ष की फुल स्टोरी
यशस्वी जैस्वाल ने 2011 में 10 साल की उम्र में एक दिन उसी के अंकल के घर पिताजी के साथ मुम्बई घूम ने किलिए चला गया । वहां मुंबई पहुंचकर भूपेंद्र को यह पता चला कि उनके भाई भी जैसे तैसे अपना गुजारा कर रहे हैं और उनके पास रहने के लिए इतनी भी जगह नहीं थी किसी को अपने साथ रख सके का । उन्हीं पर यशस्वी ने आजाद मैदान को देखा वहां पर लोग क्रिकेट खेल रहे थे वह अपने पिताजी को जिद किया की मैं गांव वापस नहीं जाऊंगा ओर मे उन्हीं रेहेकर क्रिकेट खेलूंगा उसके पिताजी ने उसका क्रिकेट खेल का जिद और पागलपन कर देख कर उसके पिताजी ने क्रिकेट खेलने के लिए राजी हो गया ।
राजी तो हो गया पर रहेगा कहाँ पर किया खाएगा लेकिन इनकी भाई ने उनके पिताजी के पास आकर बोला कि में कुछ दुकान दार बाले को जानते हु अगर यशस्वी को ठीक लगे तो बह डेरी के दुकान पर काम करने के साथ-साथ उन्हीं में रेहे भी सकता है । यशस्वी जयसवाल ने डेरी में काम करना शुरू किया ओर साथ ही साथ क्रिकेट खेलते रहे । यशस्वी ने गाँव से हीं बहुत अच्छी क्रिकेट खेलते थे । जब बह गाँव में क्रिकेट खेलते थे दूर दूर से लोग देखने किलिए आते थे उत्तरप्रदेश के भदोही मैं । इनके पास क्रिकेट के सपना अलावा और कुछ भी नहीं था और बिना सोचे समझे यशस्वी ने डेरी पर रहने के लिए हां बोल दिया और रोज सुबह जल्दी उठकर क्रिकेट का ट्रेनिंग के लिए आजाद मैदान जाया करते थे और खाली समय में डेरी पर काम किया करते थे। जैसे साफ-सफाई से लेकर चाय बनाना पानी गर्म करना और लगभग हर छोटा-मोटा काम डेरी पर किया करते और रात हो जाने पर दुकान पे हीं सो जाया करते थे ।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस समय में बह इतना सब काम कर रहे थे तब उनकी उम्र लगभग 10 से 11 साल के बीच थी । बस इस तरह कुछ दिनों तक चलता रहा फिर एक समय ऐसा आया जब बह अपना पूरा ध्यान सिर्फ क्रिकेट में देने लगे ओर जिसके कारण यशस्वी दुकान पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे । ऐसे में एक दिन देरी के मालिक ने उनका सामान उठाया और उन्हें वहां से जाने के लिए साफ़ साफ़ बोल दिया कुछ समय के लिए यशस्वी को समझ ही नहीं आया कि वह अब क्या करें हैरानी की बात है । यशस्वी ने इतनी बड़ी बात को अपने घर वालों को भी नहीं बताई और ना ही मुंबई में रहने बाले अपने चाचा को । उन्होंने अपना सामान उठाया और सीधे आजाद मैदान की ऒर चले गए ओर उस समय तक यशस्वी जैसवाल ने थोड़ा बहुत क्रिकेट खेल लिया था इसी वजह से थोड़ी बहुत जान पहचान हो गया था इसी वजह से वह अपने कोच को फोन किया और जशास्वी ने अपने परेशानी के बारे में बताया उसी कोच ने बोला कि मेरे घर आ जाओ मेरे पास रुकलो । लेकिन उसका घर भी उतनी बड़ी नहीं था एक ही कमरे था इसीलिए उनको बी बहुत ज्यादा मुश्किल हो रही थी ।
उनके कोच पपु सर् के साथ आजाद मैदान जाकर क्लब के फाउंडर को उन्होंने मदद मांगा ओर इमरान ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वह इस मैच में अच्छा परफॉर्म करेंगे तो इमरान उन्हें ग्राउंड पर ही एक टेंट में रहने की परमिशन दे देंगे इस बात को सुनकर यशस्वी ने बहुत खुश हुआ और सोचा कि फाइनली अब उन्हें एक टेंट में रहने का मौका मिल गया इतना ही नहीं इस बात से भी खुश थे कि ग्राउंड पर रहने के कारण अब वह सुबह उठते ही सबसे पहले अपने क्रिकेट की ट्रेनिंग शुरू कर सकते हैं । कई बिस्वास कोर नेई पाएगा कि ये 10 या 11 साल के बच्चे ने टेंट में रहने की इतनी खुशी हो सकती है । ज्यादातर लोग ऐसे वक्त में अपने उम्मीद खो बैठते हैं । करीबन 3 साल यशस्वी ने टेंट में रहकर अपनी क्रिकेट का सपना पूरा करने किलिए लोगे रोहे । हम आपको बताना चाहते हैं कि टेंट में ना ही कोई बिजली थी ना ही कोई टॉयलेट लगभग आधा किलोमीटर दूर में एक सौचालय था जो देर रात हो जाने से बंद हो जाया करता था । यशस्वी का कहना हे की सबसे ज्यादा तकलीफ बारिश के दिनों में होती थी । क्योंकि मैदान में पानी भर जाने के कारण उन्हें बार-बार टेंट की जगह बदलनी पड़ती थी ओर यशस्वी की जिंदगी में एक ऐसा भी समय आया जब यह सोचा करते थे की इसके बाद में खाना क्या खाएंगे ?
इसीलिए पैसों की कमी की वजह से वह सुबह कहां पर भी मैच खेलते रही और रोज रात को एक दुकान में पानीपुरी बेचा करते थे उस समय असुविधा ये होते थे कि सुबह में सेंचुरी मार कर के आए ओर हर शाम को पानीपुरी का ठेला में काम करते थे उसीबक्त उसके कोई दोस्त दुकान पर आ जाता तो बहुत दिक्कत में पड़ जाते थे और बह इधर-उधर छुप जाते थे जशास्वी की मन में यह सोच आ रहा था कि मैं सुबह इसके साथ खेल रहा हूं इसके काम बारे में दोस्तों को पता चल गया तो मैं गोलगप्पा बेच रहा हूं तो मेरा मजाक बहुत उड़ाया जाएगा वही सोच रहा था बाद में यशस्वी जसवाल ने एहसास क्या की कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता कोई दिक्कत नहीं मैं ये काम कर रहा तो । पानीपुरी बेचने के साथ-साथ वह क्रिकेट के ट्रेनिंग क्लास के बाद कभी भी इसमें कुछ कुछ मैच में स्कोरिंग गिनते तो कभी उम्पियरिंग करते और कभी कभी कुछ मैच में बाउंड्री से बोल ढूंढ कर लाया करते थे और इस तरह उन्हें कुछ पैसे मिल जाया करते थे ।
उन दिनों में यशस्वी जैस्वाल ने कोशिश करते थे कि वह ज्यादा से ज्यादा कॉर्पोरेट मैच खेले ओर उसके अच्छा परफॉर्म करने पर उन्हें उस दिन का खाना फ्री मिल जाता था और साथ ही कुछ पैसे भी मिल जाते थे । देखा जाए तो ऐसा करने के अलावा उनके पास और कुछ उपाय भी नहीं था। क्योंकि घर से भेजा गई पैसे मुंबई शहर में गुजारा करने के लिए काफी नहीं हुआ करते थे । पर इस बात की जशास्वी ने किसी से भी शिकायत नहीं की । उसके लिए क्रिकेट खेलने का सपना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था । हर रात को उन्होंने वानखेड़े स्टेडियम की लाइट दिखा करते थे और उसे देखकर यशस्वी जैसवाल आपने आपको बस यही कहते हैं कि एक दिन में परिस्थिति चाहे जैसी भी हो में अपनी दम पर खेलूंगी । यशस्वी ने अपना सपना कभी बी कमि होने नहीं दिया । आगे चलकर जिंदगी में ऐसे भी मड आए जब उन्हें किसी और के पास से रेहेकर खेलना पड़ा क्योंकि उस वक्त जितने भी पैसे उनके पास हुआ करते थे उससे उन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाए उतना ही काफी था मुंबई में उनको स्ट्रगल करने किलिए उतनी आर्थिक ही नहीं था ।
यह 3 साल उनके लिए इमोशनली काफी चुनौतीभरी थे । उन्हें टेंट में रहने की परमिशन तो मिल गई थी पर वह अकेले रहना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा यह भी खाना बनाने से लेकर कपड़े तक खुद धोया करते थे उन्हें बच्चा समझकर ग्राउंड का मालीक और बाकी स्टाफ बार-बार धमकियां किया करते थे। हर वक्त यशस्वी को धमकाया करते हैं और कई बार तो उस पर हाथ भी उठा दिया करते थे। इसी कारण यशस्वी को उन सभी के लिए भी खाना बनाना पड़ता क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करते तो उसे खाना खाने किलिए नहीं मिलता था । गर्मियों के दिनों में उन्हें ने टेंट के बाहर सोने पड़ता था और बाहर सोने की वजह से कई बार उन्हें एलर्जी भी हुई जिसके चलते उनके चेहरे और दूसरे बॉडी पार्ट First spelling हो जाए करते थे । एक 12 या 13 साल के बच्चे के लिए यह सब किसी डरावने सपने से कम नहीं हो सकता । आज भी जब यह दिन याद करते हैं तो बहुत भावुक हो जाते हैं । इतनी कम उम्र में 3 साल तक लगातार संघर्ष करते रहने की वजह से अब यशस्वी काफी हताश हो चुके थे जिसके कारण उनके पिता ने फैसला किया कि अब उन्हें मुंबई से वापस ले आएंगे । लेकिन इस चुनती पूर्ण समय मे क्रिकेट की प्रैक्टिस छोड़कर वापस नहीं जाना चाहते पर उनको यह भी नहीं पता था कि वह आगे आखिर क्या करें ।
- yashasvi jaiswal coach jwala sing story
इसी दौरान उनके जीवन में लाइफ चेंजिंग फिगर बनकर आए ज्वाला सिंह जिनकी जवाला फाउंडेशन नाम से एक क्रिकेट एकेडमी है। यह बात दिसंबर साल 2013 की है। जब पहली बार ज्वाला सिंह ने जशास्वी की खेलते देखा तो एक 13 साल के बच्चे को इतनी अच्छी खेलते देख के वो खुद को रोक नहीं पाए और पूछ बैठे कि वह कौन है और कहां रहता है । और जब उन्हें पता चला कि वह वही ग्राउंड पर एक टेंट में रहता है तो उनका दिल भर आया ओर ज्वाला सिंग को उस वक्त खुद का बचपन समय याद आ गया ।
बह खुद कैसे वह गोरखपुर से अकेले क्रिकेटर बनने किलिए मुंबई आए और जिंदगी में सही दिशा निर्देश नहीं मिलने की वजह से ना जाने कैसे-कैसे परिसनियो जिंदगी में उन्होंने चेलना पडा । ज्वाला सिंह ने उन्हें उसी समय मे नहीं मिला होता तो आज हम सब यशस्वी जैसवाल के बारे में बात नहीं कर रहे होते और ना हीं उनको टीवी में देख रहे होते हैं । ज्वाला सिंह ने कहा में बी बच्चेपन पे आपने सपने लेकर मुंबई आये थे लेकिन मुझे एक ठीक मार्गदर्शन करने बाला नहीं मिलती उसी बजसे मेरी सपना पूरी नहीं हुआ था ये सब बारे में यशस्वी जसवाल को बताया । मुंबई एक ऐसा ग्राउंड है जहां पर तो सब कुछ मिलेगा अगर आपका सपना पूरी करने में दिल से चाहने लगे और मेहनत करते रहे तो मुंबई में वह पूरा हो सकते हैं ।
ज्वाला सिंह ने कहा कि एक दिन मैदान के बाहर जा रहे थे उनकी एक दोस्त अगर हाथ नहीं दिखाया हटा तो मैं कभी भी यशस्वी से मिलता ही नहीं तो मैं मेरे दोस्त को मिलने चला गया उसके बाद अपने दोस्त से मिला और फिर मैंने यशस्वी को बैटिंग करते हुए देखा उस्से पहले एक और लड़का बैटिंग कर रहा था बह क्रिकेट पिच को लेकर बहुत शिकायत करते रहे कि बोल को खेलने किलिए समझ नहीं पा रही थी । लेकिन जशास्वी ने जब बैटिंग करने के लिए गया तो उसी पिच में बहुत ही आसानी से शानदार बैटिंग करने लगा और उसे देख कर ज्वाला सिंह ने यशस्वी को अपने पास बुलाया बोला कि बेटा क्या करते हो ? कहां रहते हो तो जशास्वी ने अपनी कहानी बताई सर अभी तो मैं टेंट में रहता हूं तो ज्वाला सिंह ने चौक गई इस तरह पूरी कहानी बताई तो ज्वाला सिंह की कहानी बी यशस्वी कहानी के साथ कनेक्ट कर लिया क्योंकि ज्वाला सिंह की कहानी बिल्कुल ऐसी ही थी गोरखपुर से जब मुंबई आए थे उसी समय में उनके पास भी कुछ नहीं था ठीक जशास्वी की तरह । ज्वाला सिंह ने फिर जशास्वी को बोला की तुमने उसे पहले कोई अच्छी क्रिकेट खेला हो तो जशास्वी ने आपने अचीवमेंट का डोकोमेंट पेपर ओर फ़ोटो दिखाएं ।
ज्वाला सिंह ने जशास्वी को क्रिकेट सिखाने का मन बना लिया और बोला कि बेटा तुम बिल्कुल भी परेशान मत हो तुम्हारा जो भी खर्चा होगा जो भी तुमको करना है वह मैं करूंगा । तुम को कोई दिक्कत कोई टेंशन लेने की जरूरत नहीं है । ठीक उसी समय जशास्वी की पिताजी ने आये तब देखा की ज्वाला सिंह ने यशस्वी जयसवाल की पूरी जिम्मेदारी ले ली । यशस्वी की पिताजी ने से हाथ जोड़कर ज्वाला सिंह को विनती की की आप उसको अपने पास रख लो ओर क्रिकेट ही खेलाओ । ज्वाला सिंह ने यशस्वी के पिता से भी बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि यशस्वी का ध्यान रखेंगे और आपका यशस्वी को बेहतरीन क्रिकेटर बनने से कोई नहीं रोक सकता। बस तभी से यशस्वी की ज्वाला सिंह ने ट्रेनिंग करते रहे । तो ज्वाला सिंह को बहुत लोग बोलते थे कि ऐसा थोड़ी ना कोई किसीका लड़को को अपने पास रखते हैं फिर बी किसी की बात नहीं सुनी ओर उस लड़के का कैरियर बना दिया । वहीं दूसरी तरफ ज्वाला सिंह ने यशस्वी को आपने ट्रेनिंग सेंटर में क्रिकेट का ट्रेनिंग देना सुरु कोर दिया ओर ज्वाला सिंग उनके जीवन में जब आ गए तब से यशस्वी की लाइफ का टर्निंग प्वाइंट था । शायद अब फाइनली उनकी जिंदगी में चल रहा संघर्ष खत्म होने वाला था और कड़ी मेहनत लगन और दृढ़ संकल्प का फल उन्हें मिलने वाला था ।
बह खुद कैसे वह गोरखपुर से अकेले क्रिकेटर बनने किलिए मुंबई आए और जिंदगी में सही दिशा निर्देश नहीं मिलने की वजह से ना जाने कैसे-कैसे परिसनियो जिंदगी में उन्होंने चेलना पडा । ज्वाला सिंह ने उन्हें उसी समय मे नहीं मिला होता तो आज हम सब यशस्वी जैसवाल के बारे में बात नहीं कर रहे होते और ना हीं उनको टीवी में देख रहे होते हैं । ज्वाला सिंह ने कहा में बी बच्चेपन पे आपने सपने लेकर मुंबई आये थे लेकिन मुझे एक ठीक मार्गदर्शन करने बाला नहीं मिलती उसी बजसे मेरी सपना पूरी नहीं हुआ था ये सब बारे में यशस्वी जसवाल को बताया । मुंबई एक ऐसा ग्राउंड है जहां पर तो सब कुछ मिलेगा अगर आपका सपना पूरी करने में दिल से चाहने लगे और मेहनत करते रहे तो मुंबई में वह पूरा हो सकते हैं ।
ज्वाला सिंह ने कहा कि एक दिन मैदान के बाहर जा रहे थे उनकी एक दोस्त अगर हाथ नहीं दिखाया हटा तो मैं कभी भी यशस्वी से मिलता ही नहीं तो मैं मेरे दोस्त को मिलने चला गया उसके बाद अपने दोस्त से मिला और फिर मैंने यशस्वी को बैटिंग करते हुए देखा उस्से पहले एक और लड़का बैटिंग कर रहा था बह क्रिकेट पिच को लेकर बहुत शिकायत करते रहे कि बोल को खेलने किलिए समझ नहीं पा रही थी । लेकिन जशास्वी ने जब बैटिंग करने के लिए गया तो उसी पिच में बहुत ही आसानी से शानदार बैटिंग करने लगा और उसे देख कर ज्वाला सिंह ने यशस्वी को अपने पास बुलाया बोला कि बेटा क्या करते हो ? कहां रहते हो तो जशास्वी ने अपनी कहानी बताई सर अभी तो मैं टेंट में रहता हूं तो ज्वाला सिंह ने चौक गई इस तरह पूरी कहानी बताई तो ज्वाला सिंह की कहानी बी यशस्वी कहानी के साथ कनेक्ट कर लिया क्योंकि ज्वाला सिंह की कहानी बिल्कुल ऐसी ही थी गोरखपुर से जब मुंबई आए थे उसी समय में उनके पास भी कुछ नहीं था ठीक जशास्वी की तरह । ज्वाला सिंह ने फिर जशास्वी को बोला की तुमने उसे पहले कोई अच्छी क्रिकेट खेला हो तो जशास्वी ने आपने अचीवमेंट का डोकोमेंट पेपर ओर फ़ोटो दिखाएं ।
ज्वाला सिंह ने जशास्वी को क्रिकेट सिखाने का मन बना लिया और बोला कि बेटा तुम बिल्कुल भी परेशान मत हो तुम्हारा जो भी खर्चा होगा जो भी तुमको करना है वह मैं करूंगा । तुम को कोई दिक्कत कोई टेंशन लेने की जरूरत नहीं है । ठीक उसी समय जशास्वी की पिताजी ने आये तब देखा की ज्वाला सिंह ने यशस्वी जयसवाल की पूरी जिम्मेदारी ले ली । यशस्वी की पिताजी ने से हाथ जोड़कर ज्वाला सिंह को विनती की की आप उसको अपने पास रख लो ओर क्रिकेट ही खेलाओ । ज्वाला सिंह ने यशस्वी के पिता से भी बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि यशस्वी का ध्यान रखेंगे और आपका यशस्वी को बेहतरीन क्रिकेटर बनने से कोई नहीं रोक सकता। बस तभी से यशस्वी की ज्वाला सिंह ने ट्रेनिंग करते रहे । तो ज्वाला सिंह को बहुत लोग बोलते थे कि ऐसा थोड़ी ना कोई किसीका लड़को को अपने पास रखते हैं फिर बी किसी की बात नहीं सुनी ओर उस लड़के का कैरियर बना दिया । वहीं दूसरी तरफ ज्वाला सिंह ने यशस्वी को आपने ट्रेनिंग सेंटर में क्रिकेट का ट्रेनिंग देना सुरु कोर दिया ओर ज्वाला सिंग उनके जीवन में जब आ गए तब से यशस्वी की लाइफ का टर्निंग प्वाइंट था । शायद अब फाइनली उनकी जिंदगी में चल रहा संघर्ष खत्म होने वाला था और कड़ी मेहनत लगन और दृढ़ संकल्प का फल उन्हें मिलने वाला था ।
उसके बाद से जशास्वी जैस्वाल ने जितना भी मैच खेला सभी मैच में शतक लगाते थे । लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उसका नाम सामील हुआ है । साल 2015 में जशास्वी को पहली बार मर्च डिजॉर्ब लाइम लाइट मिली उन्होंने गिल सील्ड मैच में नाबाद 319 रन बनाने के साथ साथ yashasvi jaiswal ने bowling करके 99 रन देकर 13 विकेट भी चटकाए इनका यह आल राउंड रिकॉर्ड लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ है। उसके बाद विजय हजारों ट्रॉफी में अंडर-16 के लिए जशास्वी का नाम को शामिल कर लिया गया ओर उसके बाद अंडर-19 एशिया कप के लिए उसका नाम टीम में शामिल किया गया उसी समय उसका जो रूम पार्टनर थे सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर थे । अंडर-19 में एशिया कप में जशास्वी जैस्वाल का टीम जीत गया और वह अंडर -16 में बी 360 रन किया ।
- yashasvi jaiswal current teams debut
यशास्व्वी जैस्वाल ने मुंबई के लिए अपना प्रथम श्रेणी डेब्यू 2018-19 में रणजी ट्रॉफी किलिए 7 जनवरी 2019 को किया । उन्होंने अपनी लिस्ट ए की शुरुआत 28 सितंबर 2019 को ओर मुंबई के टीम कीलिए 2019-20 में की विजय हजारे ट्रॉफी खेलने सुरु किया और 16 अक्टूबर 2019 को, उन्होंने झारखंड के खिलाफ विजय हजारे ट्रॉफी में मैच में 154 गेंदों में 203 रन बनाए और 17 साल, 292 दिन की उम्र में लिस्ट 'ए' क्रिकेट के इतिहास में सबसे कम उम्र का yashasvi jaiswal ने double century लगाने बला खिलाड़ी बन गई । वह शीर्ष में से एक ऐसी खिलाड़ी थे जो 2019-20 की विजय हजारे ट्रॉफी में 6 टाइम 112.80 के औसत से 6 मैचों में 564 रन बनाए थे ओर उसके साथ साथ उनका नाम 2019-20 देवधर ट्रॉफी के लिए इंडिया बी टीम में सामील किया गया था।
- यशस्वी जैस्वाल अंडर-19 वर्ल्ड कप
लेकिन यशस्वी किलिए खुशी का दिन था दिसंबर 2019 में, उन्हें 2020 अंडर -19 क्रिकेट विश्व कप के लिए भारत के टीम में नामित किया गया था ऒर उसे टीम का कप्तान चुना गया था।फरवरी 2020 में, वह अंडर -19 क्रिकेट विश्व कप में अग्रणी स्कोरर बनने के साथ साथ बह सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ सानदार शतक बनाके भारत को फाइनल में पहूंचाया।
- yashasvi jaiswal ipl नीलामी 2019-20
2020 के आईपीएल नीलामी में, जशास्वी जैस्वाल को राजस्थान रॉयल ने खरीदा ओर उसका बेस प्राइस थीं 20 लाख रुपये लेकिन उसे बिस गुना ज्यादा ढाई करोड़ रुपए में खरीदे । अभी यशासि की फाइनेंसियल प्रोब्लेम दूर हो गया इसी साल हम सब राजस्थान रॉयल्स के तरफ से खेलते हुए देखेंगे ओर बहुत जल्द भारततिय टीम से खेलते हुए बी देखेंगे ।
एक ऐसा टाइम था जब यशास्व्वी के पास खेलने के लिए खुद का बैट भी नहीं हुआ करता था पर समय का खेल देखिए खुद क्रिकेट की मोहान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने यशस्वी को शुभकामनाएं देते हुए साल 2018 में एक बैट गिफ्ट किया । आज yashaswvi jaiswal ने अपने लक्ष्य अपने ड्रीम को आशा रखते हुए और साथ ही जिंदगी की कठिनाइयों और संघर्ष के बावजूद क्रिकेट या किसी की भी सपोर्ट पूरी करने की हिम्मत दिखाते हुए आज वह इस मुकाम को हासिल किया है ओर वही सही मायनों में असली खिलाड़ी होते हैं
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